झारखंड
झारखंड की संस्कृति और परंपरा भी अनोखी , अद्भुत और बहुत गहराई तक रची बसी है।
जहां 21 वीं सदी के मोबाइल क्रांति के चकाचौंध में ग्रामीण क्षेत्रों की पारंपरिक संस्कृति व खेलकूद विलुप्त होते जा रहे हैं , वहीं आज भी बोकारो जिला के कसमार प्रखंड में सौ साल से ज़्यादा पुरानी पारंपरिक खेल प्रतियोगिता उसी रूप में जीवित है। तीरंदाजी की इस पारंपरिक प्रतियोगिता में प्रकृति से अटूट जुड़ाव , धरती से लगाव और विरासत को सहेजने का भाव झलकता है। बोकारो जिला अंतर्गत कसमार प्रखंड के मंजूरा गांव में मकर संक्रांति के अवसर पर एक अनूठी तीरंदाजी का प्रतिस्पर्धा होता है। यह प्रतिस्पर्धा ना तो मैडल के लिए, ना ट्रॉफी के लिए और ना ही नगद इनाम के लिए होती है, बल्कि यह प्रतिस्पर्धा होती है तो सिर्फ एक जमीन के लिए। इसमें विजेता को एक वर्ष के लिए के लिए करीब एक 20 डिसमिल खेत की जमीन खेती के लिए उपहार में दी जाती है। दशकों से चली आ रही यह परंपरा ‘बेझा बिंधा’ के नाम से जानी जाती है। प्रत्येक वर्ष यह प्रतियोगिता मकरसंक्रांति के दिन आयोजित होती है।इस बेझा बिंधा प्रतियोगिता में आसपास के प्रतिभागी भाग लेते हैं। प्रतियोगिता को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह रहता है। कई किसान प्रतिभागी सालों भर इस प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अभ्यास करते हैं। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के दिन यह प्रतियोगिता 14 जनवरी को ‘ बेझा बिंधा ‘ आयोजित होती है। परंपरा का इतिहास मंजूरा पंचायत के स्व . रीतवरण महतो ने अंग्रेजों के समय ही ‘ बेझा बिंधा ‘ की शुरुआत की थी। आज इस परंपरा के 100 साल से भी ज़्यादा हो गये हैं। आज स्व . रीतवरण महतो के वंशज इस प्रतियोगिता को आयोजित करवाते हैं।