घाटशिला: आगामी घाटशिला विधानसभा उपचुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं पश्चिम बंगाल के सह प्रभारी रमेश हांसदा ने क्षेत्र में अपना जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है। वे लगातार घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न गांवों का दौरा कर रहे हैं, जहां वे पुराने साथियों, समर्थकों और स्थानीय मतदाताओं से मुलाकात कर अपनी रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।इस दौरे के क्रम में उन्होंने खाड़िया कॉलोनी स्थित एक पान दुकान पर बैठकर अपने पुराने राजनीतिक सहयोगियों और भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी रणनीति और झारखंड के विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा को सत्ता से बाहर नहीं किया जाएगा। तब तक झारखंड में समुचित विकास संभव नहीं है। उन्होंने क्षेत्र की जनता से भाजपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की।
रमेश हांसदा अपने पुराने सहयोगी, शहीद सांसद सुनील महतो को भी याद करते हुए उनके संघर्षों को वर्तमान राजनीतिक संदर्भ से जोड़ा। उन्होंने नक्सली हिंसा में शहीद प्रभाकर महतो के गांव खड़ियाडीह का दौरा किया। और उनके परिजनों से मुलाकात कर हालचाल जाना। इस दौरान गांव के वरिष्ठ आंदोलनकारी बादल महतो से भी उनकी मुलाकात हुई, जिन्होंने सरकार द्वारा आंदोलनकारी सूची में नाम न आने की पीड़ा साझा की। रमेश हांसदा ने उन्हें हर संभव सहायता का आश्वासन देते हुए कहा कि भाजपा ऐसे सच्चे आंदोलनकारियों के हक की लड़ाई लड़ेगी।
इसके बाद वे बाघुडीया चौक पहुंचे, जहां उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों से मुलाकात की। इस दौरान क्षेत्र के मुखिया सुनील कुमार सिंह से भी उनका संवाद हुआ। उपस्थित लोगों के बीच उन्होंने उपचुनाव में अपनी दावेदारी पर चर्चा करते हुए और समर्थन की अपील की।
ज्ञात हो कि रमेश हांसदा 2004 में घाटशिला से शहीद सांसद सुनील महतो को चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभा चुके हैं। 2005 में रामदास सोरेन को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ा कर चुनावी समर में मजबूती दी थी। 2009 में झामुमो प्रत्याशी की जीत में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। 2014 में टिकट न मिलने पर भी उन्होंने भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण टुडू की जीत सुनिश्चित की।
इस बार रमेश हांसदा बेहद सधे हुए अंदाज़ में, बिना हाई-फाई चकाचौंध लाव लश्कर हूजूम से कोसो दूर सादगी रूपी एक साधारण आम जनमानस व्यक्ति के रूप में जनता के बीच जाकर बिना लोभ-लुभावन वादे प्रलोभन घोषणाएं से परे हटकर साधारण वेशभूषा में लोगों के बीच उपस्थित होकर संवाद कर रहे हैं। उनके इस ‘छापामार’ जनसंपर्क अभियान पर भाजपा की जिला एवं प्रदेश कमेटी की भी “रडार” रुपी नजर बनी हुई है।
अब देखना यह है, कि पार्टी नेतृत्व उनकी सक्रियता और जनाधार को किस रूप में स्वीकार करता है। और आगामी उपचुनाव में भाजपा की रणनीति में उन्हें कौन सी भूमिका मिलती है??❓
