
चाईबासा

झारखंड की सरकारें हों या फिर यहां काम करने वाली कंपनियां, दोनों ही यहां के आदिवासियों को ठगने का काम करते रहे हैं और अब भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। झींकपानी में 60 साल से अधिक समय से संचालित हो एसीसी कंपनी से अपने अधिकार को पाने के लिए कंपनी को जमीन देने वाले रैयत भटक रहे हैं। आश्वासन का टॉनिक पी रहे हैं। पूरा सरकारी तंत्र हो या फिर कंपनी सभी इन रैयतों को गोल गोल घुमा रहे हैं। जब हर चीज के लिए नियम और कानून बना हुआ है तो फिर किसी भी मामले को सालों साल तक लटकाए रखने का क्या मतलब है। चलिए हम आपको इस पूरे मामले के थोड़े बैकग्राउंड में ले चलते हैं। एसीसी कंपनी को जमीन देने वाले रैयतों में से कुछ लोग छूट गए थे, जिनको नौकरी देने की मांग लंबे समय से हो रही थी। चाईबासा के विधायक और अब मंत्री दीपक बिरूवा की कोशिश के बाद 2021 में मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने 45 रैयतों को पूरे तामझाम के साथ कार्यक्रम के दौरान नियुक्ति पत्र प्रदान किया था, लेकिन कंपनी ने इसमें से मात्र 13 लोगों को ही काम दिया। बाकी लोग पिछले 4 साल से भटक रहे हैं। इसके लिए मीटिंग भी हो रही है लेकिन परिणाम कुछ नहीं आ रहा है। अक्टूबर 2024 में भी एक बैठक हुई थी जिसमें कंपनी ने 10 जनवरी 2025 तक काम देने का आश्वासन दिया था, लेकिन हमेशा की तरह एक बार फिर कंपनी ने हाथ खड़ा कर दिया। बुधवार को चाईबासा के अनुमंडल पदाधिकारी संदीप अनुराग टोपनो की अध्यक्षता में कंपनी और रैयतों की बैठक हुई, लेकिन इसमें भी कोई नतीजा नहीं निकला।
दामुर हेस्सा, रैयत, कोंदवा गांव
त्रिपक्षीय वार्ता के बाद पत्रकारों से बात करते हुए चाईबासा के अनुमंडल पदाधिकारी संदीप अनुराग टोपनो ने कहा कि कंपनी ने 3 फरवरी तक का समय मांगा है और कुछ बेहतर करने का आश्वासन दिया है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या कंपनी ने यह पहली बार आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्ति पत्र दिए जाने के बाद भी नौकरी क्यों नहीं दी गई। ऐसे नियुक्ति पत्र का क्या औचित्य रह जाता है। रैयतों को ठगने का सिलसिला तो वर्षों से चला रहा है,क्या कंपनी सरकार और मुख्यमंत्री को भी कुछ नहीं समझती है।

Author: SUJEET KUMAR
news reporter chaibasa