डुमरिया/झारखंड
घाटशिला के आदिवासी बहुल डुमरिया प्रखंड के विभिन्न गांवों में ग्राम स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख ग्राम प्रधान के तुगलकी फरमान के कारण प्रखण्ड के 12 गांवों के लगभग 118 आदिवासी परिवार सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे हैं।
इन्हें ग्राम प्रधान और मांझी परगना महाल के द्वारा सामाजिक बहिष्कार का तुगलकी फरमान सुनाया गया है जिससे इन परिवारों का गांव में जीना दुस्वार से हो गया है, इस फरमान से जहां एक ओर इनके बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है वहीं इन्हें अपने परम्परा और संस्कृति से भी बेदखल किया जा रहा है। यहां तक कि गांव में इन परिवारों के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उनका क्रिया कर्म भी नही करने दिया जा रहा है।

इसी क्रम में डुमरिया प्रखण्ड के सेरालडीह गांव के लोग अपने परिजन के श्राद्ध कर्म करवाने के लिए डुमरिया थाना में गुहार लगाने पहुंचे,जहां से भी कोई न्याय नही मिल सका।
दरअसल पिछले वर्ष 15 सितम्बर 2024 को सेरालडीह गांव निवासी बिक्रम हांसदा की बूढ़ी मां सुहाड़ हांसदा की मृत्यु हो गयी थी,जिसका श्राद्ध कर्म की तिथि इसी सप्ताह निर्धारित की गई और गांव में टेंट,सामियाना बन गया,परिवार के सगे सम्बन्धी गांव पहुंचने लगे।लेकिन ग्राम प्रधान लक्ष्मण हांसदा की अगुवाई में ग्रामीणों ने लाठी डंडे लेकर गांव को घेर दिया है और श्राद्ध कर्म में आने वाले सगे संबंधियों को खदेड़ कर भगा दिया गया और श्राद्ध कर्म करने से रोक दिया गया है।
जिसके बाद बहिष्कार का दंश झेल रहे पीड़ित परिवार और बाहर अन्य गांवों से पहुंचे रिस्तेदार पीड़ित परिवार के साथ डुमरिया थाना में पहुंचकर पुलिस प्रशासन से मदद की गुहार लगाने के लिए बैठे हैं लेकिन इन्हें कोई मदद नही मिल रहा है।
बहिष्कृत परिवारों ने कई बार प्रखंड से लेकर जिला तक अपनी पीड़ा बताई गुहार लगाई , लेकिन हुआ कुछ नही।
पीड़ितों का आरोप है कि ग्राम प्रधानों द्वारा छोटी-छोटी बातों पर धार्मिक बहिष्कार कर दिया जाता है। इससे न केवल सामाजिक जीवन प्रभावित हो रहा है बल्कि पेयजल, शिक्षा और अंतिम संस्कार जैसी बुनियादी सुविधाएं भी बाधित हो गई हैं।









